उम्मीद की गेंद..
(Part 3):
आज बुआ आने वाली है ये सुनकर दीपू भागते हुए आँगन तक जा पहुंचा और नजरें गढ़ा दी ऊपर सड़क से गाँव की तरफ आते रस्ते पर..
उसकी छोटी छोटी आँखों ने बुआ के स्वागत के लिए रस्ते पर फूल बिछाने का काम शुरू कर दिया था...और बिछाता भी क्यूँ ना..बुआ उसे सबसे जादा प्यार जो करती थी..और सबसे अधिक प्यार नजर आता जब बुआ जाते हुए दीपू के हाथ में 10 रूपये का नोट थमा देती...
जो भी लाना सबको बराबर बाँटना कह के बुआ से लियेे नोट पे वैसे तो दीपू का ही पूरा अधिकार रहता जब तक कि छोटी बहन पूरे दिन रो रो कर अपने हिस्से के लिए अनशन पर ना बैठ जाती..
लाला महावीर 19 रूपये की बॉल देता है सोचते हुए दीपू बस इसी समस्या से दो चार हो रहा था की बाकी के 9 रूपये का इंतजाम वो कैसे कर पायेगा...
10 रूपये हमेशा की तरह बुआ से मिलने हैं ये वो मन ही मन सुनिश्चित कर चुका था... पूरे पैसे खुद ही रख लिए बोल के उसे 2 दिन बाद जो मार और डांट पड़ने वाली थी उसके लिए उसने अभी से मन पक्का कर दिया था...
जाते हुए मिलने वाली ख़ुशी के साथ साथ अब उम्मीद का दिया जा अटका था खाली हाथ न जाने के पारंपरिक रिवाज के अनुसार बुआ के लाये हुए सामन पे...
शायद इस बार ऑरेंज क्रीम वाला बिस्कुट बुआ लाये या फिर हलवाई भगवान सिंह की दुकान पे पिछले 20 दिनों से उसकी काउंटर की शोभा बढाती हुयी 3-4 प्रकार की पारंपरिक मिठाइयाँ खाने को मिल जाये...
एक दुसरे से चिपके हुए लड्डू और काफी हद तक सफ़ेद पड़ चुकी जलेबी की उम्मीद लगाये दीपू को माँ की रसोई में आज कोई दिलचस्पी नही थी..
गाँव के रास्तों को शहरों की गलियों तक में लगी ऊँची ऊँची स्ट्रीट लाइट नसीब नही होती, इसीलिए दीपू रस्ते पर आने वाले हर साए को बुआ मान रहा था और साये के उसके घर से आगे बढ़ जाने पर अगले आने वाले साये में बुआ को ढूंढ़ रहा था...
दीपू सायों को टटोल ही रहा था कि आँगन से घर की ओर आते रस्ते पे दस्तक से वो चौंक गया... झट से फाटक की ओर पलटा तो देखा कि बाबा हाथ में झोला लिए लकड़ी के फाटक को बंद कर रहे थे और बुआ हाथ में एक चमकीली थैली लिए घर की ओर बढ़ रही थी..
दीपू उछल कर, प्रफुल्लित होकर "बुआ" चिल्लाते हुए जाकर बुआ से जा लिपटा....
"कैसा है मेरा बाबू" बुआ ने दीपू को नीचे बैठ कर गले से लगा लिया....
इतनी ही देर में दीपू ने चमकीली थैली को बाहर से ही अपनी आँखों से टटोलना शुरू कर दिया और थैली के चौकोर आकार से पता लगा लिया कि हलवाई भगवान सिंह की मिठाइयाँ डिब्बे में दुबकी बैठी हैं... और शक यकीन में बदल गया जब 8 रंगों वाली थैली पर 3 रंगों से "भगवान् मिष्ठान भंडार" लिखा दिखाई दे गया..
"माँ बुआ आ गयी" कहकर ख़ुशी से लबालब दीपू बुआ को लगभग घसीटता हुआ घर के अन्दर ले गया...
To be continued...
(Alok Painuly)
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ReplyDeletesupar :)
ReplyDeleteThanku :)
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