उम्मीद की गेंद..
(Part 2):
अपने घर की सबसे बड़ी संतान दीपू अपने पीछे 2 छोटी बहने भी लाया था, जिनमे से एक पूरे दिन माँ की पीठ पे सवार रहती और दूसरी बहन दीपू के पीछे पीछे पूरे गांव के चक्कर लगाती..
ब्रह्माण्ड के नियमानुसार सूरज कुछ देर पहले धरती के इस छोर को अँधेरे में छोड़ दूसरे छोर को रोशन करने बढ़ चुका था...
गाँव के बाहर से गुजरने वाले रास्ते पर अभी भी हलचल थी.. दूसरे पडोसी गावों के लोग अपनी दुकानें बंद कर और मजदूरी से अपने घरों को लौटते समय रोजाना इस रस्ते पर चहल पहल बनाये रखते..
गाँव में छुटपुट चौपालों का दौर जमा हुआ था जो गरमियों के इस तथाकथित सुहावने मौसम में पूरे गाँव में जहाँ तहां चाय के खाली प्यालों और गिलासों के इर्द गिर्द प्रवासी ग्रामीणों और निवासी ग्रामीणों के बीच अलग अलग विषयों पर चर्चा के साथ शुरू होती और उबासी भरे "चलो हमको क्या" के विश्वव्यापी कथन से ख़त्म...
महिलाओं की चर्चा का मूल विषय गाँव के किसी परिवार और उसके सदस्यों के इतिहास, भूत भविष्य और वर्तमान तक ही सीमित रहते..
मिट्टी से सने कपड़े लिए दीपू आँगन तक आ पहुंचा था....
"क्यूँ रे....आज क्या लाया..कपडे फड्वा लाया है या चोट लगवा आया है"... ओखली में कुटे धान को सुप्पे में रखते हुए माँ ने दीपू से रोज की तरह पूछा और दीपू बिना कुछ बोले मिट्टी में लोटती छोटी बहन को गोदी में उठा पुचकारने लगा..
"क्यूँ सेवा में लगा रहता है तू सबकी..??? अरे तुझे क्या वो अपने साथ कभी खेलने देते हैं जो तू उनकी मजूरी करता फिरता है"...
दीपू से जादा दुख मानो उसकी माँ को हो रहा था जिसका छोटा सा दीपू रोज जी जान लगा देता महज इसलिए कि खेल चलता रहे और उसे भी कभी खेल में शामिल होने का मौका मिल जाये..
"मुझे बॉल दिला दे माँ"... उदासी सुर में दीपू बोला ये जानते हुए कि ये सुनने के बाद माँ इस बारे में बोलना बंद कर देगी....और हुआ भी ठीक ऐसा ही.."अच्छा ठीक है तू पहले जाके छोटी को अन्दर लेजा, मैं रसोई शुरू करती हूँ"...माँ बात को टालते हुए रसोई की तरफ चल दी..
दीपू छोटी बहन को गोदी में नचा नचा के अन्दर ले गया और दूसरी बहन की गोदी में थमा ध्यान रखने के निर्देश देकर माँ के पीछे रसोई जा पहुंचा..
"माँ पिताजी अभी तक क्यों नही आये ??" दीपू ने रसोई में चूल्हे के धुएं से बचने के लिए आधा झुक कर चलते हुए रसोई में माँ से पूछा...
"अरे तेरी बुआ आ रही है आज...उसे ही लिवाने गये हैं..आने वाले होंगे".... चावल की पतीली चूल्हे पे चढ़ा कर माँ ने मुस्कुराते हुए बताया जिसे सुनकर दीपू की आँखों में चमक दौड़ पड़ी.....मन खिल उठा मानो किसी प्यासे को मानसरोवर मिल गया हो...
To be continued...
(Alok Painuly)
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